दुष्कर्म के मामलों में पीड़िता के बयानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट्स को नसीहत दी है कि चार्जशीट दाखिल होने तक किसी भी सूरत में बयान किसी को न दिखाया जाए। रेप के मामलों में निचली अदालतें सीआरपीसी के सेक्शन 164 के तहत रेप पीड़िता के बयान दर्ज किए जाते हैं। जबकि सेक्शन 173 के तहत चार्जशीट दाखिल की जाती है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सभी हाईकोर्ट्स इस मामले में मौजूदा नियमों में व्यापक सुधार करें।
सुप्रीम कोर्ट ने ये बात तेलंगाना के एक मामले में कही। शीर्ष अदालत के समक्ष तेलंगाना पुलिस के खिलाफ अवमानना की याचिका दाखिल की गई थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि पुलिस ने रेप पीड़िता के 164 के तहत दर्ज बयानों को चार्जशीट दाखिल करने से पहले ही आरोपी को दिखा दिया। एडवोकेट तान्या अग्रवाल का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में जो आदेश पहले जारी किए हैं, उनकी पालना तेलंगाना की पुलिस ने नहीं की। पुलिस ने पीड़िता के बयान ही आरोपी को दिखा दिए।
सीजेआई यूयू ललित और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा कि एडवोकेट तान्या की दलील सुनने के बाद उन्हें लगता है कि हाईकोर्ट्स को इस मामले में संजीदगी से सोचने की जरूरत है। बेंच ने कहा कि चार्जशीट दाखिल होने से पहले किसी भी सूरत में रेप पीड़िता के बयान किसी को भी दिखाना सरासर गलत है। हम पहले भी कह चुके हैं कि ऐसा करना कानून के साथ भद्दा मजाक तो है ही, ये काम पीड़िता के केस को भी कमजोर कर देता है, क्योंकि आरोपी को बयान ही पता चल जाए तो वो बचाव का रास्ता तलाश करने लग जाता है। ये कानून के साथ एक तरह से खिलवाड़ है।
मामले में एक महिला ने अवमानना की याचिका जारी की थी। उसके पति पर आरोप है कि उसने दो जवान लड़कियों के साथ अभद्रता की। उसने अपने दोस्तों को भी उकसाया। महिला ने न्याय की अपील की साथ पुलिस में केस दर्ज कराया था। पुलिस ने पीड़िताओं के बयान दर्ज करने के बाद उन्हें आरोपियों को ही दिखा दिया। महिला ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी।