भारत के नेतृत्व में आधा दर्जन राष्ट्रों का अब विश्व की घटनाओं और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव है। न तो अमेरिका और न ही चीन दुनिया पर हावी होने का दावा कर सकता। यूक्रेन युद्ध ने पांच स्थायी शक्तियों की सीमाओं को उजागर कर दिया है। ऐसे में भारत लगातार स्थायी सदस्यता के लिए दावा पेश कर रहा है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक महीने में दूसरी बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के लिए स्थायी सीट का दावा पेश किया है। हाल में सऊदी अरब की यात्रा के दौरान जयशंकर ने कहा कि सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट हासिल करने का भारतीय दावा काफी मजबूत है, ताकि वैश्विक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिहाज से इस परिषद को प्रभावी रूप से सक्षम बनाया जा सके और अहम बात यह है कि इसके जरिए इसे और प्रासंगिक बनाया जा सके।
स्थायी सदस्यता की दावेदारी को लेकर भारत के पीछे दक्षिण एशिया, अफ्रीकी और तमाम छोटे देश लामबंद हो रहे हैं। यह बहस तेज हो गई है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अपने वर्तमान स्वरूप में 21 वीं सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता और इसमें विशाल भौगोलिक क्षेत्रों का उचित प्रतिनिधित्व नहीं है।
स्थायी सदस्यता पर बहस क्यों
इस मुद्दे पर भारत की राय स्पष्ट है- भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अगले साल इसकी आबादी दुनिया में सबसे बड़ी होने वाली है, ऐसे में यह सुरक्षा परिषद में एक स्थायी सीट का हकदार है। चीन को लेकर कई बार भारत सरकार अपने विचार सार्वजनिक कर चुकी है कि वह इस मुद्दे पर उदारवादी रवैया नहीं अपना रहा है और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के पुनर्गठन को रोक रहा है।
हाल में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि सुरक्षा परिषद अपने वर्तमान स्वरूप में 21 वीं सदी की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता और इसमें विशाल भौगोलिक क्षेत्रों का उचित प्रतिनिधित्व नहीं है। 1945 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के गठन के बाद से वैश्विक व्यवस्था ने महत्त्वपूर्ण बदलाव देखे हैं। उपनिवेश व्यवस्था के खत्म होने के बाद संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई, दुनिया एकध्रुवीय से बहुध्रुवीय हुई है, आबादी बढ़ी है। तमाम बदलावों के बावजूद परिषद की संरचना मोटे तौर पर जस की तस है। अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया को दरकिनार किया जाना जारी है।
भारत की दावेदारी
जो देश स्थायी सदस्य बनने के आकांक्षी हैं, उनमें भारत सबसे मुखर है। वह संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक देशों में से एक है और वर्तमान में अस्थायी सदस्य के रूप में काम कर कर रहा है। परिषद की संरचना को लेकर दक्षिण एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका द्वारा भी आवाज उठाई गई है, क्योंकि उनका प्रतिनिधित्व कम है। भारत दुनिया के अविकसित और विकासशील देशों के हितों का प्रतिनिधित्व भी करता है।
गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत के प्रति भारत की निष्ठा और पंचशील में दृढ़ विश्वास ने दुनिया में शांति और स्थिरता को बढ़ावा दिया है। भारत ने जी-4 में सुधारोन्मुखी देशों के साथ अपनी संलग्नता बढ़ाई है, क्योंकि वे भी स्थायी सदस्यता के आकांक्षी हैं। इसके अलावा उसने एल69 समूह (एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका का एक बहु क्षेत्रीय समूह है) के साथ भी संलग्नता बढ़ाई है।
मुद्दे क्या-क्या
भारत का मानना है कि विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व व्यापार संगठन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी बड़े संरचनात्मक बदलाव की जÞरूरत है। इनमें से कुछ बहुपक्षीय फोरमों में सुधार के वास्ते अपने रुख को मजÞबूत बनाने के लिए, भारत हाल में बहुपक्षीय समूहों जैसे आइबीएसए (भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका) और जी4 देशों (ब्राजील, जर्मनी, भारत और जापान) के साथ गोलबंद हो रहा है।
यूएनएससी के पांच स्थायी सदस्यों में से चार देशों, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस शामिल हैं, ने विस्तारित यूएनएससी में स्थायी सीट के लिए भारत की उम्मीदवारी को अपना समर्थन दिया है। चीन ने भारत को शामिल किए जाने में अड़ंगा लगाया है।
पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इटली जैसे चीन के करीबी सहयोगी भी यूएनएससी में स्थायी सदस्यता के लिए भारत की उम्मीदवारी का विरोध करते रहे हैं। भारत, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के लिए समस्या यह है कि वे स्थायी निकाय के सदस्य तब तक नहीं हो सकते जब तक कि सुधारों पर पी5 के बीच सहमति नहीं बन जाती।
चीन का अड़ंगा
चीन ने भारत को शामिल किए जाने में अड़ंगा लगाया है। पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इटली जैसे चीन के करीबी सहयोगी भी स्थायी सदस्यता के लिए भारत की उम्मीदवारी का विरोध करते रहे हैं। भारत को दरकिनार करने के लिए चीन ने इसके बजाय छोटे और मझोले आकार के देशों को शामिल किए जाने का प्रस्ताव रखा है।
चुनौतियों के बावजूद भारत ने विस्तारित परिषद में स्थायी सीट पाने के अपने रुख को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। परिषद के स्थायी सदस्य फ्रांस सहित कई देशों ने भारत के दावे के लिए समर्थन किया है, लेकिन कई ताकतवर देश विस्तार या पुनर्गठन की दिशा में काम नहीं कर रहे हैं। सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र का सबसे शक्तिशाली अंग है।
सुरक्षा परिषद नए सदस्यों को मंजूरी दे सकती है और संयुक्त राष्ट्र चार्टर में बदलाव कर सकती है और यह शांति मिशन और सैन्य कार्रवाई को भी मंजूरी दे सकती है और प्रतिबंध लगा सकती है।
क्या कहते हैं जानकार
पुनर्गठन के किसी भी प्रस्ताव पर एक प्रश्न उठता है कि क्या स्थायी सदस्यों को प्राप्त वीटो पावर को जारी रखा जाना चाहिए? वीटो पावर कई मुद्दों के समाधान को रोकता है। दूसरी ओर, यूक्रेन युद्ध ने पांच स्थायी शक्तियों की सीमाओं को उजागर कर दिया है। वीटो धारकों का क्लब अंतरराष्ट्रीय कानूनों को लागू करने की संयुक्त राष्ट्र की क्षमता को कमजोर कर रहा है।
- डीपी श्रीवास्तव, पूर्व राजनयिक
नई वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए सुरक्षा परिषद को जल्द ही पुनर्गठित किया जाना चाहिए, नहीं तो संयुक्त राष्ट्र अपनी प्रासंगिकता खो देगा। 138 करोड़ की आबादी के साथ भारत के पास कोई स्थायी सीट नहीं है और उसे अस्थायी सदस्यता (बिना वीटो पावर वाले) के लिए छोटे देशों के साथ चुनाव लड़ना होता है।
- विष्णु प्रकाश, पूर्व राजनयिक