गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के सामने अपना ‘आदिवासी गढ़’ बचाने की बड़ी चुनौती है। भाजपा ने आदिवासी वोटों पर अपनी पकड़ बनाने के लिए बड़ी रणनीति बनाई है। भाजपा के पास निमिषाबेन मनहरसिंह सुथार (निमिषा सुथार) जैसी आदिवासी नेता पहले ही राज्य में एक जाना पहचाना नाम बन चुकी हैं। निमिषा दो बार की विधायक हैं और गुजरात बीजेपी की आदिवासी आवाज के तौर पर तेजी से आगे आई हैं। लेकिन एक और नाम है जो कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किलें पैदा करने वाला है। हम बात कर रहे हैं मोहन सिंह राठवा की।
चुनाव से ठीक पहले 10 बार के विधायक और गुजरात के प्रमुख आदिवासी नेता मोहन सिंह राठवा मंगलवार को भाजपा में शामिल हो गए। यह कांग्रेस के लिए तगड़ा झटका है। मोहन सिंह राठवा राज्य के उन गिने-चुने नेताओं में से एक हैं, जो 2002 के दंगों के बाद के चुनावों को छोड़कर, 1972 के बाद से हुए एक भी चुनाव नहीं हारे हैं, भले ही उन्होंने किसी भी सीट से चुनाव लड़ा हो।
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वर्तमान में वह मध्य गुजरात में छोटा उदयपुर निर्वाचन क्षेत्र से विधायक हैं। हाल ही में राठवा ने घोषणा की थी कि वह आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए टिकट नहीं मांगेंगे। हालांकि, उन्होंने इच्छा जाहिर की थी कि छोटा उदयपुर विधानसभा सीट से उनके बेटे राजेंद्र सिंह राठवा को उम्मीदवार बनाया जाए। कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य नारन राठवा ने भी कथित तौर पर अपने बेटे के लिए इसी सीट से टिकट मांगा है। तमाम विवाद के बीच उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी।
इस्तीफा देने के बाद राठवा यहां भाजपा कार्यालय पहुंचे और भाजपा के प्रदेश महासचिव भार्गव भट्ट और प्रदीप सिंह वाघेला ने उन्हें पार्टी में शामिल किया। इस दौरान राठवा के बेटे राजेंद्र सिंह और रंजीत सिंह भी भाजपा में शामिल हो गए। यह पूछे जाने पर कि क्या भाजपा में उन्हें टिकट मिलेगा, राठवा ने दावा किया कि वह इसे लेकर शत-प्रतिशत आश्वस्त हैं। कांग्रेस के लिए एक और संभावित सिरदर्द यह है कि राठवा के छोटे बेटे, जिसके लिए वह टिकट चाहते थे उनकी शादी कांग्रेस पार्टी के नेता प्रतिपक्ष सुखराम राठवा की बेटी से हुई है। सुखराम राठवा भी एक बड़ा नाम हैं। आदिवासी वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए कांग्रेस ने उन्हें पिछले साल ही इस पद पर नियुक्त किया था।
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आम आदमी पार्टी भी गुजरात में जोरों-शोरों से प्रचार में लगी है। हालांकि इस बीच भाजपा आक्रामक रूप से आदिवासी वोटों को लुभा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तापी जिले के सोनगढ़ की आदिवासी सीट से पार्टी के अभियान की शुरुआत की है। वहीं कांग्रेस को शायद राठवा के जाने की उम्मीद थी। नेता लंबे समय से राज्यसभा सांसद नारन राठवा के साथ चल रहे थे। ये दोनों अपने बेटों के लिए टिकट की होड़ में थे। पार्टी के सूत्रों के अनुसार, 79 वर्षीय मोहन सिंह राठवा ने चुनावी राजनीति से हटने के लिए 2017 से पहले “अपना वचन दिया”, लेकिन फिर उस वर्ष का चुनाव लड़ा। बाद में 2019 में, उनके बेटे रंजीत सिंह को पार्टी ने लोकसभा उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा, लेकिन उस चुनाव में, कांग्रेस को राज्य में एक भी लोकसभा सीट नहीं मिली।
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